सवालिया
कब इस भीड़ से
सुर-ताल और
सिर- चाल मिलाए इसी
के तलवे तले, इसी
के क़ाबू और
कानून में
पसर गई थी
मालूम नहीं पड़ता।
किस ओर मुख
फेरा कि किसी को
खोया, और कब
उसको प्यारी हो चली
कब, जो पहले बस
तन ही समझा था
अब,
अनगिनत अर्थ
अनोखी संस्कृति
अपठित विचारों
और विचरणों को
ढोने लगा था
देखी अनदेखी आँखें
कब मुझे नापती
और कब
नज़रंदाज़ कर जाती
कहना मुश्किल था
नाम-बेनाम
बदनाम-गुमनाम
कब हुआ
किसने किया
और क्यों,
क्या पता
ख़ैर
इन सवालों की
क्या मजाल कि
अनजानी पहचानी
इस गुत्थी से
एक भी जवाब लिए आएँ |
Image Source : Teag Mcgillivary /flickr